Saturday, April 14, 2018

आओ कुछ दूर मेरे साथ चलकर देखो- गज़ल

आओ कुछ दूर मेरे साथ चलकर देखो-

अपनी अरमान की दुनियां से निकलकर देखो।
बर्फ़ बन जाओ मगर फ़िर भी पिघल कर देखो।
मंज़िले शौक़ को पाने में मज़ा आएगा।
राह में गिर के उठो और संभलकर देखो।

इस नए दौर की ईजादो तरक़्क़ी के लिए।
अपने हाथों की लकीरों को बदल कर देखो।
हर  नई सुबह का आग़ाज़ तो होगा लेकिन।
ख़ुद भी इक बार ज़रा रात में ढल कर देखो।

अपनी मंज़िल का निशां तुमको नज़र आएगा।
साफ़ पानी से करो आंखों को मलकर देखो।
झूम उठ्ठेगा ये सारा ही चमन ख़ुशबू से।
एक ग़ुंचे की तरह फूल में  ढल कर  देखो।

मंज़िलें आप ही बढ़ बढ़ के क़दम चूमेंगी
अपने मां-बाप  के कहने पे तो चल कर देखो।
हर तरफ रौशनी ही रौशनी होगी हरदम।
शम्मे महफ़िल की तरह तुम भी तो जलकर देखो।

गर परखना है वफा मेरी मुहब्बत मेरी।
आओ कुछ दूर मिरे साथ तो चलकर देखो।
तीरगी क्या है समझ जाओगे तुम ख़ुद ही वसीम।
ताक़ पर रक्खे दिये की तरह जलकर देखो।
























✍️Syed Waseem Naqvi ✍️


اپنی ارمان کی دنیا سے نکل کر دیکھو۔
برف بن جاؤ مگر پھر بھی پگھل کر دیکھو۔

منزل شوق  کو پانے میں مزا آئے گا۔
راہ میں گر کے اٹھو اور سنبھل کر دیکھو۔

اس نئے دور کی ایجاد و ترقی کے لئے۔
اپنے ہاتھوں کی لکیروں کو بدل کر دیکھوں۔

ہر نئی صبح کا آغاز تو ہو گا لیکن۔
خود بھی اک بار ذرا رات میں ڈھل کر دیکھو۔

اپنی منزل کا نشاں تم کو نظر آئے گا۔
صاف پانی سے کرو آنکھوں کو مل کر دیکھو۔

جھوم اٹھے گا یہ سارا ہی چمن خوشبو سے۔
ایک غنچے کی طرح پھول میں ڈھل کر دیکھو۔

منزلیں آپ ہی بڑھ بڑھ کے قدم چومینگی۔
اپنے ماں باپ کے کہنے پے تو چل کر دیکھو۔

ہر طرف روشنی ہی روشنی ہوگی ہر دم۔
شمع محفل کی طرح تم بھی تو جل کر دیکھو۔

گر پرکھنا ہے وفا میری محبت میری۔
آؤ کچھ دور مرے ساتھ تو چل کر دیکھو۔

تیرگی کیا ہے سمجھ جاؤ گے تم خود ہی وسیمٓ۔
طاق پر رکھے دیے کی طرح جل کر دیکھو۔


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