Monday, April 9, 2018

चीन की खिलाफत या सियासत। जरूरत क्या?- Hindi Article on India-China

Image by Sasin Tipchai

भारत विश्व पटल और एशिया में अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है, इस बात में कोई दोहराय नहीं है। दक्षिण एशिया में भारत का असर और वर्चस्व दुनिया की नज़रों में उस समय आ गया जब मालदीव में चल रहे राजनीतिक संकट पर पूर्व राष्ट्रपति गय्यूम ने भारत से हस्तक्षेप करने की मांग की। दक्षिण एशिया में बढ़ते इस असर को देखते हुए चीन ने भारत को हस्तक्षेप नहीं करने का कहा है, हालांकि भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर मालदीव में आपातकाल को परेशान करने वाला बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के जजों की गिरफ्तारी के आदेश को चिंताजनक बताया।

चीन का इसी तरह का बर्ताव एक अरसे से भारत के लिए रहा है, डोकलाम विवाद हो या कश्मीर में सड़क निर्माण का मुद्दा, वह हर बार भारत के विपक्ष की राजनीती करता आ रहा है। विश्व पटल पर भी चीन कई मंचो पर भारत की खिलाफत करता नजर आ चूका है। इससे साफ है के भारत के बढ़ते वर्चस्व से चीन दबाव महसूस कर रहा है, हालांकि चीन, भारत के साथ मिलकर आगे बढे तो वह विश्व पटल पर विश्व के देशो की अगुवाई कर सकता है, जो अभी तक अमेरिका के हाथों में रही है। लेकिन ऐसा न करके चीन ने कुछ योजनाएँ पाकिस्तान के साथ शुरू की है क्यों कि चीन को विश्व पटल पर अकेले स्वयं का एकाधिकार चाहिए साथ ही अनेक मंचो पर भारत की खिलाफत से उसके मनसूबे पहले ही साफ हो चुके है। भारत सरकार इजराइल और ईरान दोनों के साथ मजबूत सम्बन्ध स्थापित कर अपनी बेहतरीन कूटनीतियों का उदाहरण पेश कर चुकी है। हालांकि इसका एक बेहतर जवाब ये हो सकता है की हम ताइवान से अपने रिश्तों को और बेहतर बनाए।

अब समय आ गया कि भारत सरकार अपनी आंतरिक नीतियों में भी सुधार करे जिससे भारतीय कंपनियों को प्रोत्साहन मिले और चीनी कंपनियों का वर्चस्व देश में कमजोर हो, जो कि अभी सबसे मजबूत है।हालांकि सिर्फ चीनी कंपनियों को ही इससे नुकसान नहीं होगा, इसका बहुत सीधा और बुरा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा लेकिन इसका जवाब हम ताइवान और जापान सरीखे देशों के साथ मिल कर निकाल सकते है। जिससे इन देशों के लिए भी बाजार का विकास होगा और भारतीय बाजार किसी एक देश पर निर्भर नहीं होंगे।

Written by- Aviram
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