किसी रिश्तेदार के चले ?
"तेरे पापा तो आज भी किसी के यहाँ गए हुए
है।"
"मम्मी, क्यों पापा किसी के भी यहाँ यूँ
ही बिना काम के चले जाते है, पता नहीं कब समझेंगे।"
बेटी तू बता, नए घर में कब से जा रही हो।"
मम्मी, आज इन्होने इस घर का सौदा कर दिया,
2 लाख रूपये भी ले लिए है जिन्होंने लिया है वो कल शाम या परसो तक आ जायँगे, मेने भी
सामान बांध लिया है कल नए घर में पहुंचाने को, बस एक बार ये नए घर की कागजी कार्यवाही
ख़त्म हो जाये तो जान में जान आये।"
"चल ठीक है माँ, रखती हूँ फॉन, तू आना फिर
नया घर देखने, और पापा का ध्यान रखा कर पागलपन में ज्यादा कमी नहीं रह गयी अब उनके।"
"ठीक है बेटी", उदासी के साथ ना चाहते हुए
भी अंतिम बात सुन फॉन रख दिया।
परसो सुबह बेटी का फॉन कॉल पिता ने उठाया,
"अरे, तू रो क्यों रही है, क्या बात हो
गयी।" पिता ने बेटी को रोते हुए सुना तो पूछा।
"पापा आपको कुछ नहीं पता आप मम्मी को फॉन
दो।"
"बेटी तू बता तो सही क्या बात हो गयी",
रोते-रोते चुप न हुई तो फॉन पत्नी को दे दिया।
मम्मी सब बिगड़ गया हम कहा जाये अब, वो उस
डीलर ने आज नए घर में शिफ्ट करने को कहा था, लेकिन अभी तक भी इनको पजेशन नहीं मिला
है, और तो और हम अपना घर भी छोड़ना पड़ा, अभी सामान गाड़ी लोड हुआ रखा है कुछ समझ नहीं
आ रहा',बेटी ने रोते हुए कहा।
"बेटी तुम कहा हो, परेशान मत हो, मैं अभी
तुम्हारे पापा को भेजती हूँ ये कुछ न कुछ जरूर कर देंगे।"
बेटी ने पता बताया लेकिन पापा को भेजने
को मना भी कर दिया।
बेटी ने पिता के आने की बात अपने पति को
बताई तो वो साहब भी नाराज हो गए कहने लगे,'सड़क पर आ गए है ये बात का ढिंढोरा पीटने
की क्या जरुरत थी जो पापा को यहाँ बुला रही हो',चुप चाप रोते हुए सुना।
कुछ 20-25 मिनिट में ही दामाद जी ने ससुर
को सामने पाया और असहज जो गए।
"पिता ने बात शुरू करते हुए बोले बेटा तुम
परेशान बिलकुल मत हो और दामाद जी चलो मैरे साथ चलो की फाइल कहा अटक गयी जो पजेशन नहीं
मिल रहा।"
"पापा में कल भी जाकर आया था, लेकिन जिस
अफसर के पास फाइल है वो बहुत कड़क है और 2 सप्ताह का समय लगने की कह रहा है, मैने दोस्तों
को बोल दिया वो लोग आस पास किराये का घर देख रहे है', दामाद जी ने घटी घटना बताई और
साथ चलने में असहमति दिखाई, लेकिन ससुर की दबाव डालने पर पत्नी को गुस्से से देखते
हुए चले गए।
अरे अरे भाई साहब को प्रणाम, प्रणाम, और
बताओ कैसे आना हुआ आज यहाँ', ऑफिस में जाते ही उसी अफसर ने सभी को नजरअंदाज करते हुए
दूर से ही ससुर साहब को पहचानते हुए जो कहा उसे सुनकर दामाद जो चौक पड़े।
नमस्कार साहब, यही अपने ऑफिस में दामाद
जी के घर के पजेशन को लेकर कोई फाइल अटकी पड़ी थी बस उसी के सिलसिले में आना हुआ था',यह
कहते हुए कुर्सी संभाली ही थी के चाय का कप सामने आ गया, न जाने इतनी ही देर में कब
सरकारी साहब ने चाय का आदेश दे दिया।
"दामाद जी आपने पहचाना नहीं इनको ये अपने
छोटे वाले मौसा जी के ही भाई है", दामाद जी को मिलवाते हुए कहा।
बातों-बातों में चाय के साथ फाइल भी निपट
गयी। घर आकर माता-पिता के आशीर्वाद के साथ बेटी-दामाद ने गृह प्रवेश किया।
"बेटा तुम दोनों ने जिंदगी में पढाई बहुत की है लेकिन जिन्होंने जिंदगी को ज्यादा पढ़ा हो उनकी इज्जत करना मत भूलो, माँ-बाप और दोस्ती, बेटा ये जो रिश्ते है ना या बहुत कुछ होते है लेकिन सब कुछ नहीं। हमारे अपने रिश्तेदारों को भी समझना हमारी ही जिम्मेदारी है और खुशनसीबी भी", माँ ने बेटी दामाद को सीख देते हुए पति के साथ उस घर से विदा ली।
कुछ साल बीत चुके है इन बातों को, लेकिन अब बेटी-दामाद छोटे से त्यौहार को भी आनंद लेना नहीं भूलते और अब रिश्तों की डोर जो उन्हें कभी नज़र ही नहीं आयी उस डोर को सब से बांधते और मजबूत करते नज़र आतेहै।
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