सारे सपने आसमान की
ऊंचाइयों पर थे, इतने उचे की परिंदो से भी ज्यादा और घमंड इतना
की आँखों से होते हुए हर किसी की नज़रो से उसके दिल में उतर रहा था, सब की दिल
में एक ही बात ये लड़का अब करने क्या वाला है या ऐसा क्या कर रहा है की किसी की
सुनने को तैयार ही नहीं।
अगले दिन... उतरा
हुआ चेहरा देखते ही मानो कह रहा हो नही अब और जीने की ख्वाहिश ही नही, दर्द हर
किसी की आँखों से टपक रहा था लेकिन कोई एक शब्द कहने को राज़ी ना था कोई राज़ी
हो भी तो कैसे जिसने कल एक न सुनी उसे आज फिर कुछ कहे तो कैसे वो फिर बात अनसुनी
कर सामने वाले का ही मजाक बना देगा...
और वो लड़का जिसके बारे में यहाँ हर कोई
कुछ न कुछ कयास लगा रहा था मानो चीख चीख के कह रहा हो की कोई तो आगे आकर मुझे सीने
से लगा लो, बुझ रहा हुँ में मुझ दीपक को कोई तो इन हवाओँ से बचा लो,
आकर कोई आगे मुझे सीने से लगा लो...
बहुत लम्बी थी वो
रात जब उसने ऊपर वाले के ही रचे इन गलियारों में पहली मर्तबा कदम रखे थे, गलियारों
से नावाकिफ़ वो अपना सब कुछ लुटा आज बिस्तर पर बिना किसी सपनें के था, नींद भी आये
तो कैसे उसकी कीमत चुकाने को उसके पास आज सपने जो न थे, आज फिर माँ की वो गोद याद
आ रही थी नींद थी चैन था बहुत ख़ुशी का वो पल था जो उसने अपने
सपनों के चक्कर में कही गुमा दिया था आज उस पल की कीमत इतनी महंगी देख खुद की
गरीबी पर आंसू बहा रहा था कभी मुफ्त में वो प्यार मिल रहा था तो तवज्जो नही दे
पाया, आज हर वो वक़्त ने मुफ्त में बांटे थे उनकी कीमत देख हैरत में
था।
दिल जल रहा था लेकिन
कोई बुझा नही रहा था वो आँचल जो पीछे छोड़ आया वो नज़रो से रूबरू हो और भी कमी
दे रहा था गम तो और भी था लेकिन वो ममता का आँचल पिता का प्यार बचपन की कच्ची
यादें और उनकी सच्ची मिठास आज बहुत याद आ रही थी...
मै रास्ते तलाश रहा
था कल के लिए, न जाने सुबह का सूरज कब सर तक आ गया। आँखों से आंसू
गिरते कोई देख न ले इस दर से सर से रजाई भी नही हटाई थी गर्मी थी
अंदर लेकिन ये देखने को वक़्त कहा मिला, आज तो सिर्फ वो माँ की गोद की दरकार थी
जिसे कही किसी गली में छोड़ थोड़ा खुश सा था मै... थोड़ा खुश सा था मै
सुबह उठा तो नज़रे
मिलाने की हिम्मत न थी, डर दिल में रमा पड़ा था की कोई बीती रात का जिक्र न कर दे,
भरी महफ़िल में कोई तार-तार न कर दे...
सबकी नज़रे कही और ही
रुकी थी, जहाँ थी वहा मै भी गया... जिस हार को कल से छिपा रहा था वो आज के
अख़बार में देख सुन्न रह गया था मै। बीती रात मैने तो गुजार दी लेकिन कोई ऐसा
भी था जो कल रात गुजर गया था। हार उसकी नही ये मेरी ही थी की खुद को सँभालते
संभाले जा रहा था अपने उस खिलाडी को भूल गया था जो आज का सूरज ही नही देख
पाया...
माफ़ करता हुँ खुद को जब भी याद करता
हुँ... जो माफ़ नही कर पाया वो इस दुनिया में ही नही रह पाया...
मेरे पास कोई नही था सँभालने को सिवाय
तानो के, गलतिया गिनाने वालो के...
अपनों की छीटा-कशी को आँखों से समझ जाना, कही फिर
रात गुज़ारे बाद ये ख्याल पल-पल न सताये।Written by - Aviram
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