Sunday, April 15, 2018

खिलाफत की सियासत- एक रैली की जिवंत घटना


भगवा झंडे लिए कई सारे लोग रैली निकलते हुए। मंच के नजदीक पहुंचते हुए रैली से 2 लोग और लोगों से आगे आये।

युवा नेता के दोस्त ने कहा - "यार सुन ये रैली निकालनी जरुरी है क्या?"(अपनी गलती का अहसास हुआ तो युवा नेता से उसने कहा)
युवा नेता ने कहा - "ये रैली हम तेरी वजह से ही तो निकाल रहे है, तूने ही तो कहा था की मुसलमान इस देश का नहीं है वो हमारे लिए दुश्मन है जो हमें लूटने आये है" (युवा नेता एक मर्तबा तो चिड़ा लेकिन फिर तुरंत दोस्त को अपनी बात याद दिलाई)
कुछ देर बाद युवा नेता से उसके दोस्त ने कहा - "कहा था, गलती थी वो मेरी चल सबसे माफ़ी मांगते है और निकलते है यहाँ से?"
युवा नेता ने कहा - ज्यादा चु-चुपेक न कर चुप चाप साथ चल नारे लगा, नारे के सिवा तेरी एक आवाज आई तो तेरी जुबान ही खींच लूंगा" (युवा नेता अब जब पत्रकारों और आम लोगों के बीच अपने मुद्दे के साथ सबकी नजरों में था तो दोस्त की इस बात से चिढ़ते हुए गुस्से में डाटते हुए कहा)
युवा नेता से उसके दोस्त ने कहा - "लेकिन तू तो मेरी वजह से ये सब कर रहा है न, तो चल अभी अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगते है सब से" (दोस्त ने फिर अपनी गलती मानते हुए युवा नेता को समझाने का प्रयास किया)
युवा नेता ने कहा - "क्या खाक तेरे लिए करूँगा, तेरे कौनसे बाप को मार दिया मुसलमानों ने जो उसका बदला लेना है?, मुझे तो अगले चुनाव में खड़े होना है इस एक रैली और तेरे गज़ब के भाषण की वजह से सारे शहर की नज़रो में भी आ जाऊंगा और देशभर के अख़बारों में भी" (युवा नेता के मन की गन्दगी अब उसके शब्दों में भी दिखी)
युवा नेता से उसके दोस्त ने कहा- "चल-चल आगे चल मैं बस तेरा जज़्बा देख रहा था की तू कितना तैयार है इस रैली के लिए भाषण के लिए आया हूँ मैं, ये नारे-वारे तू तेरे लगा ले"
युवा नेता से उसके दोस्त ने कहा- "ठीक है, चल अब  जा माइक पर और गाड़ दे झंडे"

युवा नेता के दोस्त ने माइक पर कहना शुरू किया - "आप जितने भी लोग यहाँ हो उनमे से कितनो के बाप को मुसलमानों ने मारा है? (इस सवाल के साथ ही सभी लोगों ने अपनी आपसी बातों को ख़त्म कर मंच पर कान गाड़ दिए), बताओ कितने अनाथ हो यहाँ?, कोई नहीं है?, चलो ये बताओ की कितनो को मुसलमानों ने नुकसान पहुंचाया है?, जवाब मैं देने की कोशिश करता हूँ, उन्होंने कश्मीर में वहां के पंडितो पर अत्याचार किये (इसके साथ ही दोस्त की साँस में साँस आई और तालियां बजवाई), लेकिन इतिहास ने फिर खुद को दोहराया गुजरात में और फिर वहीँ कत्ले-आम हुआ मगर इस बार निशाना कोई और रहा। लेकिन अब जब इन सब घटनाओं को इतना वक़्त गुजर गया है, तो अब हम उसके परिणामों की आसानी से चर्चा कर सकते है। क्या कश्मीर में फिर से कश्मीरी पंडित फिर से नहीं बसे?, या गुजरात में मुसलमान नहीं बसे?, तो अब ये मुद्दे कहाँ गए?, चलो ये तो हो चुकी बातें थी, क्या लगता है यहाँ जो भीड़ लगा के जमा हुए हो इसका अंत कहाँ जाकर होगा?, चलो प्रेक्टिकल सोच के बताओ क्या मुसलमान कहीं भी जा सकते है अब? यहीं प्रश्न मुसलमानों से भी है की क्या हिंदुओ को भेज सकते हो कहीं?, अब ये मत सोच लेना  की इसका कोई उपाय नहीं है इसका कोई उपाय इसलिए नहीं है क्यों की यहाँ कोई उलझन ही नहीं है। जिस राष्ट्रवाद का नाम लेकर आपको इस तरह की रैलियों में बुलाया जाता है तब ये बातें जरा भी आपके जहन में नहीं आती?, पूरा देश एक परिवार है जिसमे भातीं-भातीं के लोग रहते है, कुछ लोग जो इस परिवार पर कब्ज़ा करना कहते है वो पहले इसके कुछ सदस्यों के हित का झांसा उन्हें देते है और फिर सत्ता के नशे में इस हद तक गिर जाते है की अपने ही परिवार के लोगों पर ही तलवार चला देते है। अपने बच्चों को अच्छा भविष्य देने के लिए, खुद को एक अच्छा बुढ़ापा देने के लिए, जरुरत है सबसे पहले आप खुद को उस परिवार का सदस्य समझे और फिर समझे अपनी जिम्मेदारियों को, और इस तरह अपने ही लोगों पर वार करने वाले लोगों की तुरंत पहचान कर उन्हें अपने एक होने की बात कहे नहीं समझे तो बाकि सदस्यों को बताये की वह क्या चाहता है। हमें जरुरत है अपने ही परिवार को समझने की, क्या हम उस देश में नहीं रहते जहाँ महान अर्थशास्त्री श्री चाणक्य एक दलित को राजा बनाने में कोई हिचक नहीं रखते, क्यों की वो एक राजा बनने के लायक थे। क्या हम उस देश में नहीं रहते है जहाँ स्वयं खाना खाने से पहले आने वाले अतिथि को खाना खिलाया जाता है? यहाँ तक की गाय या कुत्तो तक के लिए भी हमारे जहन में स्थान है। क्या हम उस देश में नहीं रहते है जहाँ हम अनजाने व्यक्तियों को भी भैया या चाचा कहके पुकारते है न की अन्य देशों की तरह नाम लेके। यह कहते हुए मेरी आँखे भरी हुई है की आप यहाँ से तो ख़ुशी-ख़ुशी चले जायँगे कल फिर ऐसी ही किसी रैली में तोड़ फोड़ करने वाले गैंगस्टर्स तक के साथ नज़र आ जाओगे, मैं दुखी हूँ।"
भीड़ से कई आवाजे इस एक शब्द को बुलंद करती नज़र आई- "नहीं"
युवा नेता के दोस्त ने कहा - "चलो ठीक है मान लिया आप नहीं आओगे, लेकिन आपके बच्चे तो आएंगे?, आप उन्हें कौनसा उनको बताओगे की राष्ट्रवाद होता क्या है?"
भीड़ ने एक बार फिर एक साथ आवाज उठाई - "बतायंगे"
"सनातन, सहिष्णुता और वासुदेव कुटुम्बकम, ज्यादा कुछ नहीं मांगूगा लेकिन इन शब्दों को समझ आत्मसात कर लोगे तो राष्ट्रवाद आपकी नजरो के भीतर तेर जायेगा।

अगले दिन अख़बारों में अगले दिन खबर अलग थी, इस बार खबरों में कोई नेता नहीं एक आम शख़्स था जो ढ़ेरों ढ़र्रों को हिला चुका था और बहुत सो को तो गिरा चुका था।


Written by - Author Aviram
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