Monday, May 28, 2018

प्रेरक प्रसंग- स्वामी विवेकानंद जी

सत्य का साथ कभी न छोड़े
स्वामी विवेकानंद प्रारंभ से ही एक मेधावी छात्र थे और सभी लोग उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित रहते थे। जब वो अपने साथी छात्रों से कुछ बताते तो सब मंत्रमुग्ध हो कर उन्हें सुनते थे। एक दिन कक्षा में वो कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे, सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न थे की उन्हें पता ही नहीं चला की कब मास्टर जी कक्षा में आए और पढ़ाना शुरू कर दिया। मास्टर जी ने अभी पढऩा शुरू ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी।कौन बात कर रहा है? मास्टर जी ने तेज आवाज़ में पूछा। सभी छात्रों ने स्वामी जी और उनके साथ बैठे छात्रों की तरफ इशारा कर दिया। मास्टर जी क्रोधित हो गए।
उन्होंने तुरंत उन छात्रों को बुलाया और पाठ से संबधित प्रश्न पूछने लगे।  जब कोई भी उत्तर नहीं दे पाया। तब अंत में मास्टर जी ने स्वामी जी से भी वही प्रश्न किया, स्वामी जी तो मानो सब कुछ पहले से ही जानते हों , उन्होंने आसानी से उस प्रश्न का उत्तर दे दिया। यह देख मास्टर जी को यकीन हो गया कि स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बात-चीत में लगे हुए थे।फिर क्या था।
उन्होंने स्वामी जी को छोड़ सभी को बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी। सभी छात्र एक-एक कर बेच पर खड़े होने लगे, स्वामी जी ने भी यही किया। मास्टर जी बोलेनरेन्द्र तुम बैठ जाओ!नहीं सर, मुझे भी खड़ा होना होगा क्योंकि वो मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था। स्वामी जी ने आग्रह किया। सभी उनकी सच बोलने की हिम्मत देख बहुत प्रभावित हुए।

"किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आए- आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं"
स्वामी विवेकानन्द (Swami Vivekananda) 

Thursday, May 3, 2018

किसी रिश्तेदार के चले? - Author Aviram

किसी रिश्तेदार के चले ?
"तेरे पापा तो आज भी किसी के यहाँ गए हुए है।"
"मम्मी, क्यों पापा किसी के भी यहाँ यूँ ही बिना काम के चले जाते है, पता नहीं कब समझेंगे।"
बेटी तू बता, नए घर में कब से जा रही हो।"
मम्मी, आज इन्होने इस घर का सौदा कर दिया, 2 लाख रूपये भी ले लिए है जिन्होंने लिया है वो कल शाम या परसो तक आ जायँगे, मेने भी सामान बांध लिया है कल नए घर में पहुंचाने को, बस एक बार ये नए घर की कागजी कार्यवाही ख़त्म हो जाये तो जान में जान आये।"
"चल ठीक है माँ, रखती हूँ फॉन, तू आना फिर नया घर देखने, और पापा का ध्यान रखा कर पागलपन में ज्यादा कमी नहीं रह गयी अब उनके।"
"ठीक है बेटी", उदासी के साथ ना चाहते हुए भी अंतिम बात सुन फॉन रख दिया।
परसो सुबह बेटी का फॉन कॉल पिता ने उठाया,
"अरे, तू रो क्यों रही है, क्या बात हो गयी।" पिता ने बेटी को रोते हुए सुना तो पूछा।
"पापा आपको कुछ नहीं पता आप मम्मी को फॉन दो।"
"बेटी तू बता तो सही क्या बात हो गयी", रोते-रोते चुप न हुई तो फॉन पत्नी को दे दिया।
मम्मी सब बिगड़ गया हम कहा जाये अब, वो उस डीलर ने आज नए घर में शिफ्ट करने को कहा था, लेकिन अभी तक भी इनको पजेशन नहीं मिला है, और तो और हम अपना घर भी छोड़ना पड़ा, अभी सामान गाड़ी लोड हुआ रखा है कुछ समझ नहीं आ रहा',बेटी ने रोते हुए कहा।
"बेटी तुम कहा हो, परेशान मत हो, मैं अभी तुम्हारे पापा को भेजती हूँ ये कुछ न कुछ जरूर कर देंगे।"
बेटी ने पता बताया लेकिन पापा को भेजने को मना भी कर दिया।
बेटी ने पिता के आने की बात अपने पति को बताई तो वो साहब भी नाराज हो गए कहने लगे,'सड़क पर आ गए है ये बात का ढिंढोरा पीटने की क्या जरुरत थी जो पापा को यहाँ बुला रही हो',चुप चाप रोते हुए सुना।

Tuesday, May 1, 2018

आँखों से समझ जाना-A Night with fear and died morning.

सारे सपने आसमान की ऊंचाइयों पर थे, इतने उचे की परिंदो से भी ज्यादा और घमंड इतना की आँखों से होते हुए हर किसी की नज़रो से उसके दिल में उतर रहा था, सब की दिल में एक ही बात ये लड़का अब करने क्या वाला है या ऐसा क्या कर रहा है की किसी की सुनने को तैयार ही नहीं।
अगले दिन... उतरा हुआ चेहरा देखते ही मानो कह रहा हो नही अब और जीने की ख्वाहिश ही नही, दर्द हर किसी की आँखों से टपक रहा था लेकिन कोई एक शब्द कहने को राज़ी ना था कोई राज़ी हो भी तो कैसे जिसने कल एक न सुनी उसे आज फिर कुछ कहे तो कैसे वो फिर बात अनसुनी कर सामने वाले का ही मजाक बना देगा... 
और वो लड़का जिसके बारे में यहाँ हर कोई कुछ न कुछ कयास लगा रहा था मानो चीख चीख के कह रहा हो की कोई तो आगे आकर मुझे सीने से लगा लो, बुझ रहा  हुँ में मुझ दीपक को कोई तो इन हवाओँ से बचा लो, आकर कोई आगे मुझे सीने से लगा लो... 

बहुत लम्बी थी वो रात जब उसने ऊपर वाले के ही रचे इन गलियारों में पहली मर्तबा कदम रखे थे, गलियारों से नावाकिफ़ वो अपना सब कुछ लुटा आज बिस्तर पर बिना किसी सपनें के था, नींद भी आये तो कैसे उसकी कीमत चुकाने को उसके पास आज सपने जो न थे, आज फिर माँ की वो गोद याद आ रही थी नींद थी चैन था बहुत ख़ुशी का वो पल  था  जो उसने अपने सपनों के चक्कर में कही गुमा दिया था आज उस पल की कीमत इतनी महंगी देख खुद की गरीबी पर आंसू बहा रहा था कभी मुफ्त में वो प्यार मिल रहा था तो तवज्जो नही दे पाया, आज हर वो  वक़्त ने मुफ्त में बांटे थे उनकी कीमत देख हैरत में था। 

दिल जल रहा था लेकिन कोई बुझा नही रहा था वो आँचल जो पीछे छोड़ आया वो नज़रो से रूबरू हो और भी कमी दे रहा था गम तो और भी था लेकिन वो ममता का आँचल पिता का प्यार बचपन की कच्ची यादें और उनकी  सच्ची मिठास आज बहुत याद आ रही थी... 

मै रास्ते तलाश रहा था कल के लिए, न जाने सुबह का सूरज कब सर तक आ गया। आँखों से आंसू गिरते  कोई देख न ले इस दर से सर से रजाई भी नही हटाई थी गर्मी थी अंदर लेकिन ये देखने को वक़्त कहा मिला, आज तो सिर्फ वो माँ की गोद की दरकार थी जिसे कही किसी गली में छोड़ थोड़ा खुश सा था मै... थोड़ा खुश सा था मै 

सुबह उठा तो नज़रे मिलाने की हिम्मत न थी, डर दिल में रमा पड़ा था की कोई बीती रात का जिक्र न कर दे, भरी महफ़िल में कोई तार-तार न कर दे...

सबकी नज़रे कही और ही रुकी थी, जहाँ थी वहा मै भी गया... जिस हार को कल से छिपा रहा था वो आज के अख़बार में देख सुन्न रह गया था मै।  बीती रात मैने तो गुजार दी लेकिन कोई ऐसा भी था जो कल रात गुजर गया था। हार उसकी नही ये मेरी ही थी की खुद को सँभालते संभाले जा रहा था अपने उस खिलाडी को भूल गया था जो आज का सूरज ही नही देख पाया... 
माफ़ करता हुँ खुद को जब भी याद करता हुँ... जो माफ़ नही कर पाया वो इस दुनिया में  ही नही रह पाया...
मेरे पास कोई नही था सँभालने को सिवाय तानो के, गलतिया गिनाने वालो के... 
अपनों की छीटा-कशी को आँखों से समझ जाना, कही फिर रात गुज़ारे बाद ये ख्याल पल-पल न सताये।

Written by - Aviram