भगवा झंडे लिए कई सारे लोग रैली निकलते हुए। मंच के
नजदीक पहुंचते हुए रैली से 2 लोग और लोगों से आगे आये।
युवा नेता के दोस्त ने कहा - "यार सुन ये रैली निकालनी जरुरी
है क्या?"(अपनी गलती का अहसास हुआ तो युवा नेता से उसने कहा)
युवा नेता ने कहा - "ये रैली हम तेरी वजह से ही तो निकाल रहे
है, तूने ही तो कहा था की मुसलमान इस देश का नहीं है वो हमारे लिए दुश्मन है जो हमें
लूटने आये है" (युवा नेता एक मर्तबा तो चिड़ा लेकिन फिर तुरंत दोस्त को अपनी बात
याद दिलाई)
कुछ देर बाद युवा नेता से उसके दोस्त ने कहा - "कहा था, गलती
थी वो मेरी चल सबसे माफ़ी मांगते है और निकलते है यहाँ से?"
युवा नेता ने कहा - ज्यादा चु-चुपेक न कर चुप चाप साथ चल नारे लगा,
नारे के सिवा तेरी एक आवाज आई तो तेरी जुबान ही खींच लूंगा" (युवा नेता अब जब
पत्रकारों और आम लोगों के बीच अपने मुद्दे के साथ सबकी नजरों में था तो दोस्त की इस
बात से चिढ़ते हुए गुस्से में डाटते हुए कहा)
युवा नेता से उसके दोस्त ने कहा - "लेकिन तू तो मेरी वजह से
ये सब कर रहा है न, तो चल अभी अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगते है सब से" (दोस्त
ने फिर अपनी गलती मानते हुए युवा नेता को समझाने का प्रयास किया)
युवा नेता ने कहा - "क्या खाक तेरे लिए करूँगा, तेरे कौनसे
बाप को मार दिया मुसलमानों ने जो उसका बदला लेना है?, मुझे तो अगले चुनाव में खड़े होना
है इस एक रैली और तेरे गज़ब के भाषण की वजह से सारे शहर की नज़रो में भी आ जाऊंगा और
देशभर के अख़बारों में भी" (युवा नेता के मन की गन्दगी अब उसके शब्दों में भी दिखी)
युवा नेता से उसके दोस्त ने कहा- "चल-चल आगे चल मैं बस तेरा
जज़्बा देख रहा था की तू कितना तैयार है इस रैली के लिए भाषण के लिए आया हूँ मैं, ये
नारे-वारे तू तेरे लगा ले"
युवा नेता से उसके दोस्त ने कहा- "ठीक है, चल अब जा माइक पर और गाड़ दे झंडे"
भीड़ से कई आवाजे इस एक शब्द को बुलंद करती नज़र आई- "नहीं"
युवा नेता के दोस्त ने कहा - "चलो ठीक है मान लिया आप नहीं
आओगे, लेकिन आपके बच्चे तो आएंगे?, आप उन्हें कौनसा उनको बताओगे की राष्ट्रवाद होता
क्या है?"
भीड़ ने एक बार फिर एक साथ आवाज उठाई - "बतायंगे"
"सनातन, सहिष्णुता और वासुदेव कुटुम्बकम, ज्यादा कुछ नहीं मांगूगा
लेकिन इन शब्दों को समझ आत्मसात कर लोगे तो राष्ट्रवाद आपकी नजरो के भीतर तेर जायेगा।
अगले दिन अख़बारों में अगले दिन खबर अलग थी, इस बार खबरों में कोई
नेता नहीं एक आम शख़्स था जो ढ़ेरों ढ़र्रों को हिला चुका था और बहुत सो को तो गिरा चुका
था।
Written by - Author Aviram
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